Saturday, October 22, 2011

तुझसे एक पल की मुलाकात !




तुझसे एक पल की मुलाकात काफी है उम्र-बसर के लिए,
बाकी तो सारी जिंदगी मुश्किल है तन्हा सफ़र के लिए,

मरते है जिस्म, नहीं मरती है रूहें मगर,
नहीं तो कोई क्यों लाता फूल भी कब्र-ए-पत्थर के लिए,

मिल जाती जो मुसाफिर को आरजू से मंजिल,
ना खोजता  दर-बदर उसको, ना पूछता राह-ए-गुज़र के लिए,

बिना गम-ए-पड़छाई के खुशियों के उजाले कुछ नहीं,
बनते है ख्वाब हकीकत जब होती है रात सहेर के लिए,

आसमाँ भी पीघलने को मजबूर हो जाए,
आब-ए-चश्म भी चाहिए होने को दुआ में असर के लिए,

तुझसे एक पल की मुलाकात काफी है उम्र-बसर के लिए,
बाकी तो सारी जिंदगी मुश्किल है तनहा सफ़र के लिए,

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