Saturday, October 22, 2011

कहेते कहेते!


कहेते कहेते लाबोने कुछ ना कहा, 
दिल के जस्बात दिल में ही रहे से गए,

सि नहीं सकते किसी धागे से,
वक़्त के साथ जख्म भी बढ़ते गए,

मंजिल को जो कभी जाती ही नहीं,
हम उसी राह पर ही चलते गए,

चाह कर भी जिन्हें भूला ना सके,
कुछ लम्हे यादोमे ही बसते गए,

जलाना तो शमा की फितरत है,
नादान परवाने फिर भी जलाते गए,

फूल प्यार का तो खिला भी नहीं,
शूल रंजिशो के ही चुभते गए,

ग़ज़ल - अहेसास-इ-हिज्र


कोई सदा (आवाज़) मेरे कानो में गूंज रही है,
शायद कोई मुझे पुकारता होगा,
जिस तरह में बेकरार हु तन्हाई में,
कोई मेरी जुदाई में भी तड़पता होगा...............० कोई सदा ०

सोंधी सोंधी खुशबु आ रही है,
किसी आखो से सावन बरसता होगा,
कही क़यामत ही न हो जाए,
ये सोच का र किसी दिल दहेलता होगा............० कोई सदा ०

कातिल लगता है ये खुशनुमा मौसम,
कोई पल पल कहीं मरता होगा,
में जी रहा हूँ ये सोच कर,
मेरी यादो के सहारे कोई जीता होगा..............० कोई सदा ०

कमबख्त बादल गरजता है यूँ,
किसी का दिल जोरो से धड़कता होगा,
बिजलिया गमो की गिरा कर,
आसमान भी अपने किये पर रोता होगा.........० कोई सदा ०



अच्छी लगती है!


बाते कई है कई कहेने को फिर भी ख़ामोशी अच्छी लगती  है!
मरासिम तो बढ़ते जाते है फिर भी तन्हाई अच्छी लगती है!

बहोत मिली है खुशियाँ लेकिन आखों में नमी अच्छी लगती है!
सुकून से दुश्मनी नहीं हमें, बेचैनियों से यारी अच्छी लगती है!

सबसे मिला है प्यार बेशुमार, बेरुखी यार की अच्छी लगती है!
ज़िंदगी तो खुबसूरत है "शरद" पर मौत से मोहब्बत अच्छी लगती है!


कुछ ज्यादा चाहता हूँ!

अपनी हेसियत से कुछ ज्यादा चाहता हूँ!
खता है मेरी मै तुझे चाहता हूँ!

सहेरा की रेत में है मेरा ठिकाना,
 बाग़ - बहार - घटा चाहता हूँ!

नहीं ओरों सी मेरी किस्मत तो क्या है,
आजमाना एक दाव चाहता  हूँ!

मुमकिन नहीं तुझसे मिलना लेकिन,
तेरे दिल में थोड़ी सी जगह चाहता हूँ!

जमाने में मज़ाक बना कर भी अपना,
बस तेरे लबो पर हँसी चाहता हूँ!

"एक अफसाना "





मस्त रहेते थे मस्तीमे मस्ताने की तरह,
सजी रहेती थी महेफिले मयखानों की तरह,

वह मिला हमसे कभी अनजाने की तरह,
जिसके चहेरे पर मर मिटे परवाने की तरह,

लेते थे जिसका नाम हरपल दीवाने की तरह,
छलकती थी आँखे यादमे पयमाने की तरह,

जिसके ख्वाबो को संभाला था खजाने की तरह,
जिसके बिन राते लगती थी विराने की तरह,

रहेता था वह साँसोंमें गुनगुनाने की तरह,
भूल गया वह हमें "एक अफसाने" की तरह...

तुझसे एक पल की मुलाकात !




तुझसे एक पल की मुलाकात काफी है उम्र-बसर के लिए,
बाकी तो सारी जिंदगी मुश्किल है तन्हा सफ़र के लिए,

मरते है जिस्म, नहीं मरती है रूहें मगर,
नहीं तो कोई क्यों लाता फूल भी कब्र-ए-पत्थर के लिए,

मिल जाती जो मुसाफिर को आरजू से मंजिल,
ना खोजता  दर-बदर उसको, ना पूछता राह-ए-गुज़र के लिए,

बिना गम-ए-पड़छाई के खुशियों के उजाले कुछ नहीं,
बनते है ख्वाब हकीकत जब होती है रात सहेर के लिए,

आसमाँ भी पीघलने को मजबूर हो जाए,
आब-ए-चश्म भी चाहिए होने को दुआ में असर के लिए,

तुझसे एक पल की मुलाकात काफी है उम्र-बसर के लिए,
बाकी तो सारी जिंदगी मुश्किल है तनहा सफ़र के लिए,

दिदार

दिदार से तेरे जी भरता नहीं है,
कुछ ओर देखने को जी करता नहीं है,

नज़र आती है सिर्फ सूरत तेरी,
अब आईने से दिल डरता नहीं है,

तेरी आँखों की झील है इतनी गहेरी,
कोई डूब जाए तो उभरता नहीं है,

झुल्फों को बिखर जाने दो अब तो,
के घटाओं से सावन बरसता नहीं है,

तेरे लबों ने सारी रंगत चुरा ली,
कोई गुल बागो में खिलाता नहीं है,

रोशनी से ही तेरी झिलमिलाता है आलम,
परवाना शमा पर अब मरता नहीं है,

तेरी महक से हो कर के पागल,
तूफ़ान  हीं ओर ठहेरता नहीं है,..........

दिदार से तेरे जी भरता नहीं है,
कुछ ओर देखने को जी करता नहीं है,

तारीफ़-ए- माशूक

"दिल ने चाहा आप से कहू अपनी सूरत,
शराफत ने कहा,"तेरी इतनी जुर्रत!"
अब आप ही कहिये, क्या करे, क्या कहे?
इस दिल को तो है सिर्फ आपकी जरुरत!"


"अब्र में छुपा माहताब नज़र आया,
पर्दानशी शबाब नज़र आया,
ख्वाब में भी ना देखा कभी,
चहेरा आपका ला'जवाब नज़र आया!"




"दर्द-ए-शायरी"

"आँखों ने चूका दिया मोती बिखेर कर,
कर्ज था बहोत दर्द का दिल पर!"



"दर्द दिल का ही दवा बन गया वरना,
हकिम लूँट लेते बाकी बचे अरमानो को!"



"अगर कुछ लब्ज़ मिसरी से मिला देते,
हम जहर भी चाय समझ कर पी लेते!"

अगर आसपास कँही तुम जो होते!

अगर आसपास कँही तुम जो होते,
किसी पेड़ के निचे हम बैठे होते,

छेड़ जाती मस्त पवन ये जो तुमको,
तुम आके मेरी बाजुओं में लिपटते,

कुछ अरमान दिल में तुम्हारे मचलते,
अधुरे मेरे ख्वाब कुछ पुरे होते,

ओढ़के ओढ़नी धरती दुल्हन बनी है,
चुनर ओढ़के थोड़े तुम शरमाते,

झूमती है फ़सल आज लहेराके ऐसे,
संग पंछियों के प्यार के गीत गाते,

फूल खिले है गुलशन में इतने,
कुछ तेरी झुल्फों में भी हम सजाते,


"हाल-ए-दिल"

 
बंदिशे बहोत सी है जुबाँ पर, बोलु कैसे?
दिल में छूपा है जो राज़, खोलू कैसे?
बोल दु तो डर है रूठ जाए ना कोई,
अब तक है जो साथ छुट जाए ना कहीं,
कहें  बिना भी तो रहा नहीं जाता है,
दर्द दिल का चहेरे पर नज़र आता है,

आग लगी और उठा जो जरा धुँवा,
किसीने पूछा अरे तुझे क्या हुआ, 
कहे तो दीया "कुछ भी नहीं,"
पर मेरे दिल पर मुझे यकीं नहीं,
बार बार फिर यहीं सवाल आता है,
अबे साले, तु क्यों इतना घबराता है?

जवाब: 
"कल करे सो आज कर, आज करे सो अब,
किस्मत मेरी ख़राब है फिर ना कहेना तब."



"तेरी चिठ्ठी आई है"

बस कुछ दिन हुए, तुम गए परदेश,
और तेरी चिठ्ठी आई है,

हमें तो हर पल होता था अहेसास,
शायद तेरी चिठ्ठी आई है,

तुम क्या गए शहर से, हर तरफ 
अजीबसी ख़ामोशी छाई है,

जीवन के अंधेरो में गुम हो गई,
यक़ीनन तू मेरी पड़छाई है,

चुभने लगी है जो साँसों में,
ये कैसी चली पुरवाई है,

उजाड़ गई दिल की बस्ती को,
आज ऐसी बारिश आई है,

मेरे मन के आँगन याद तेरी,
बीते लम्हों की बारात लाइ है,

कुछ देर पहेले ही तो सूखी थी !,
फिर वह आँख भर आई है.................तेरी चिठ्ठी आई है

वह आते है मेरे पास!

वह आते है मेरे पास कभी कभी किसी बहाने से,
फिर भी लगता है जैसे मिले नहीं ज़माने से,

उनके पहेलु में गुजरे पल जिंदगी की नैमत है,
भूल न पायेंगे कभी यूँही भुलाने से,

रहेगुज़र-ए-शरद  उनकी गली  से हो कर गुजरती है,
वर्ना हम भी पाए जाते किसी मयखाने में,

उनके ख्वाबों की दुनिया में बीत जाती है रात मेरी,
नींद खुलती है खयालो में उनके आने से......
o वह आते है मेरे पास o

एक झलक

क्यों उदास है तु?....... क्यों उदास है तु?

किसी ख्वाब को टूटते तुने देखा है कँही,
उसके टूटने की खनक सुन रही है तु,

तेरी जुल्फों की लहेराती हुई लटे,
बिखर रही है तेरे चहेरे के चारसू,

सुनी सड़क पर चल रही बेखबर,
गुम हो गयी है कँही तेरी आरजू,

मै तेरी एक झलक देखता ही रहा,
घुल रही हो हवाओ में जैसे खुश्बू,

चले आते है!


तेरे चहेरे से उठता है जो नूर इतना,
शमा को छोडके परवाने चले आते है!

तेरी खुश्बू से महेकता है मौसम ऐसे,
कँही भी हो दीवाने चले आते है!

समझ कर चाँद तुझे अमावस की रातो में,
तेरे दीदार को सितारे चले आते है!

कदम चूमने को तेरे साहिल की रेत पर,
दरियाँ कई किनारे चले आते है!

गुजरे जब तु मैदान-ए-सहेरा से,
मस्त बहारो के नज़ारे चले आते है!

महेफिल में कँही तुमसे मुलाकात भी हो,
हम मौसकी के बहाने चले आते है!

Friday, October 21, 2011

लहू जरा आया...

मुडके देखा तो वक़्त वह फिर ना आया,
जिसकी थी आरजू वह सख्स भी ना आया,

बेवफा कैसे कहू, ना थी खबर उसको,
मेरी खता थी दिल उस पर मेरा आया,

लिखे थे कुछ पन्ने, थोड़े फाड़ दिए,
उड़ गए बाकी, हवा का जो झोका आया,

किसे कहु "अपना",  किसे "पराया" समझु,
निभाता रहा रिश्ते जो समझ ही ना पाया,

भरते है जख्म नहीं भरते चाक-ए-जिगर,
फिर किसीने छेड़ा, लहू जरा आया...