Friday, October 22, 2010

तन्हा लम्हें

१३ अगस्त २०१० को मेरा एक्सिडेंट हुआ और मेरे दाए घुटने के नीछे फेक्चर हुआ, जिसके कारण २ महीनो तक मुझे बिस्तर पे रहेना पड़ा.  उस समय मेरे मन पता नहीं क्यों कुछ आछे विचार ही नहीं आते थे, पर जब पिछले एक हफ्ते से वाकर के सहारे चलने लगा हूँ और "गूगल चाट" पर ऑफिस के मित्रो के साथ बाते करने लगा हूँ, अचानक से कुछ पंक्तिया बन जाती है जो यहाँ लिख रहा हूँ.

दुनिया नहीं रूकती किसी एक जिन्दगी के लिए,  
वह तो चलती रहेती है नए कारवाँ लिए
हां, कभी कभी कुछ बिछड़ जाते है लोग,
पर कँही कँही मिल भी जाते है लोग...


हम तो तन्हाईयो में भी शोर सुन लेते है,
बीते लम्हों को हसके याद कर लेते है,
अगर बिखर भी गए सुर्ख आखोँ से दरिया,
बनाकर माला मोतियों की पहेन लेते है.....


Sunday, June 27, 2010

शायरी

लाखों में खुबसूरत आप थी, आपको ही पाने एक आस थी,
वोह आस भी टूट गयी, अब तो बस आपकी याद है,
याद क्यों आती है आपकी ? खुदा से यही फ़रियाद है.

शायरी

फुर्सद नहीं है फिर भी थोडा सा वक़्त निकल लेते है,
दिल में गमों के जाम भरे है आँखों से उन्हें छलका देते है.

शायरी

तारुख अगर जिंदगी से करे तो जवाब उसका मौत होगा,
परवाना जो शमा से मिले तो अंजाम उसका मौत होगा,
गुझादिलो के लिए पैगाम-ऐ-जंग भी मौत होगा,
जांबाजों के लिए मकसद-ऐ-करम ही मौत होगा...

शायरी

सुकून नहीं मिलता एक गर्दिश-ऐ-जहाँ में,
तन्हाईयोमे भी यादो की भीड़ लगी रहेती है,
जर,जोरू,जमीन की जद्दोजहेत में मशरूफ है आदमी,
इंसान बनने के लिए वक़्त की कमी रहेती है,

शायरी

"तेरी आँखों के जरिये दिल में उतरना चाहते थे हम,
तेरी जुल्फों की रेशमी छाव में सोना चाहते थे हम,
हमको जलाया तेरी बेरुखी ने वरना,
तेरी मोहाब्बत की आग में जलना चाहते थे हम"