दिल के जस्बात दिल में ही रहे से गए,
सि नहीं सकते किसी धागे से,
वक़्त के साथ जख्म भी बढ़ते गए,
मंजिल को जो कभी जाती ही नहीं,
हम उसी राह पर ही चलते गए,
चाह कर भी जिन्हें भूला ना सके,
कुछ लम्हे यादोमे ही बसते गए,
जलाना तो शमा की फितरत है,
नादान परवाने फिर भी जलाते गए,
फूल प्यार का तो खिला भी नहीं,
शूल रंजिशो के ही चुभते गए,